“६ से १७ अप्रैल १९६२ की तारीख उराव जाति-समाज के इतिहास में सोने की अक्छरो में लिखा जाना चाहिए, क्योकि राजी पडहा का कार्यक्रम धरातल में उतरने के पूर्व उराव जाति-समाज पर अन्य मानव समाज के द्वारा चारो तरफ से अतिक्रमण और शोषण का घेरा बंदी था | उराव जाति का मानव समाज में अस्तित्व और पहचान करीबन समाप्त हो चूका था | इसी ओझा की घडी में हमारे राजी-पडहा देवान माननीय श्री भीखराम भगत जी का संपर्क इत्तिफाक से टाना-भगतों से होता है । टाना-भगतों की सूझभूज और जोर-जुलुम से राजी देवान ने रांची जिला के कुडू थाना का ग्राम वन्दुवा में एक वृहद महासभा का आयोजन किया । इस महासभा में स्वर्गीय कार्तिक उराव जी ने भाग लेकर प्रतिनिधियों के दिलों में समाज की रक्षा के लिए नव जागरण का दीप जलाया |
इसी महासभा में टाना भगतों का अगुवा स्वर्गीय रक्ति टाना भगत जी ने राजी पडहा बेल पद पर सर्वसमानति से चुनाव प्रतिनिधि में हिस्सा लिया | राजी देवान ने बड़ी लगन से राजी पडहा का प्रचार प्रसार प्रारंभ किया |
ऐसे जिएं जैसे कि आपको कल मरना है और सीखें ऐसे जैसे आपको हमेशा जीवित रहना है.
- महात्मा गाँधी
हे भाइयों और बहनों !
क्या कुछ डालोगे छिद्र वाली पेट में,
कमाई का कुछ अंश डालते जाओ धरम के खाते में|
क्या लोगे भगवान के दरबार में,
नहीं तो खड़े रह जाओगे ओसारा में|
होश करो राजी पडहा कहने पर,
नहीं तो पछताओगे समय के चले जाने पर|
यही आह्वान है राजी पडहा का,
यही पुकार है चाला अयंग का|
जय धरम !
राजी-पडहा मंच !
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अन्ना आदि मुंजराना मलेका,
निनिम धर्में-र-अँदय बंगायो ||2||
उर्मी निनिम एरा लगदाय,
उर्मी गे जोड़गर र-अँदय बंगायो,
कोड़ा-कोड़ा र-अँदय बंगायो ||2||
जनम-करम चिचेंकय धर्में,
पोसा-आ परदा-आ लगेदयँ बंगायो ||2||
आशिष चिअदय उर्मीनिम्,
दवा नअदय उर्मीगेम,
धरम डहरेन ऐँद आ बंगायो
पडहा डहरेन ऐँद आ बंगायो ||2||
तङग आ जिया लेक्खा धर्में,
ओरमार ही जियन बंगे,
ऐरना लूरन चे आ बंगायो ||2||
दोषी गा र-अदन पहे,
निनिम धर्में तारोय-ओए बंगायो ||2||
निनिम जानुम तरोय,
अन्ना आदि मुंजराना मलेका,
निनिम धर्में-र-अँदय बंगायो ||2||
जय धरम !
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